ख़ामोशी
"ख़ामोशी " का बवंडर लगता है, ये लब्जो का भार,
जैसे, शमां की चिंगारी न दिखती है ,किसी को ,
सब उसकी रोशनी को देखते हे ,
पर ये न जाने की वो जलाती ,व तपाती हे ,किसको |
आँधिया तो मन में चलती हे ,
तन तो बिल्कुल शान्त रहता हे ,
ये तो वो घाव हे, जो रूह तक असर करता हे |
ये तो उस 'बवंडर' सा हे ,
जो हसीं पर हमला करता हे ,
और लब्जो को सिलकर,
नयनो में नीर बनकर आ बहता हे|
'ख़ामोशी 'का ये बवंडर जग में शांत हे ,
पर जिस जान को छूता हे कोई उससे पुछे ,
कि उसका क्या हाल करता है | |
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